भारत ने जम्‍मू कश्‍मीर पर यूएन के विशेष दूतों की टिप्‍पणी खारिज की


News by Rajdhani Evening News // Published on :19 Feb,2021



नई दिल्ली:

भारत नेजम्‍मू कश्‍मीर पर यूएन के विशेष दूतों की टिप्‍पणी खारिज की

नई दिल्ली।भारत ने जम्‍मू-कश्‍मीर पर मानवाधिकार परिषद की ओर से अल्‍पसंख्‍यक मुद्दे और धार्मिकस्‍वतंत्रता को लेकर प्रेस को जारी बयान पर कडी आपत्ति जताई है। विदेश मंत्रालय केप्रवक्‍ता अनुराग श्रीवास्‍तव ने कहा कि भारत का मानना है कि इस मुद्दे पर विशेष दूतोंको तत्‍काल निष्‍कर्ष निकालने से पहले बेहतर और उचित समझ विकसित करनी चाहिए।

अल्‍पसंख्‍यकमुद्दे पर दक्षिण अफ्रीका के विशेष दूत फर्नान्‍ड डि वारेंस की ओर से जारी बयान काजवाब देते हुए विदेश प्रवक्‍ता ने कहा कि उनके बयान इस तथ्‍य से मेल नहीं खाते कि‍जम्‍मू-कश्‍मीर भारत का अभिन्‍न अंग है और 5 अगस्‍त, 2019 को इस क्षेत्र को केन्‍द्र-शसितप्रदेश का दर्जा देने का फैसला देश की संसद ने किया था।

उन्‍होंनेकहा कि दशकों पुरानी भेदभाव की  व्‍यवस्‍थाका अन्‍त करने के उद्देश्‍य से भारत ने जो कदम उठाये, उससे इन विदेशी दूतों के बयानमेल नहीं खाते। लोकतंत्र को व्‍यवस्थित करने के लिए जमीनी स्‍तर पर जिला विकास परिषदके स्‍थानीय चुनाव बेहतर ढंग से संचालित कराए गए जिससे स्‍थानीय स्‍तर पर सुशासन सुनिश्चितहुआ है।

प्रवक्‍ताने कहा कि प्रेस विज्ञप्ति में इस तथ्‍य की अनदेखी की गई है कि देश के बाकी हिस्‍सोंकी तरह प्रदेश में लागू किए गए मौजूदा कानून के सकारात्‍मक परिणाम मिले हैं। इससे देशके अन्‍य नागरिकों की तरह जम्‍मू-कश्‍मीर के लोगों को भी समान अधिकार मिले हैं।

केन्‍द्रशासितप्रदेश में जनसांख्यिकी में बदलाव से संबंधित आशंकाओं का जवाब देते हुए प्रवक्‍ता नेकहा कि जम्‍मू कश्‍मीर में जारी मूल निवास प्रमाण पत्र के दायरे में वहां की बडी जनसंख्‍याआती है। प्रदेश के निवास प्रमाणपत्र धारकों की संख्‍या बताती है कि इन दूतों की आशंकाएंबेबुनियाद हैं।

इस महीनेकी 10 तारीख को दो विशेष दूतों ने भारतीय अधिकारियों के साथ एक प्रश्‍नावली साझा कीथी। प्रवक्‍ता ने बताया कि मानवाधिकार परिषद के दूतों ने जवाब की प्रतीक्षा किए बिनाही मीडिया को अपने काल्‍पनिक विचार जारी किए। प्रवक्‍ता ने इसकी कड़ी आलोचना करते हुएकहा कि यह बयान ऐसे समय में जानबूझकर जारी किए गए, जब राजदूतों के इस समूह को प्रदेशका दौरा करना था।

फर्नान्‍डडि वारेंस ने गुरूवार को अपने बयान में कहा था कि, संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञजम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता को समाप्त करने और भारत में मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यकोंकी राजनीतिक भागीदारी के पिछले स्तर को कम करने के साथ-साथ रोजगार और भूमि स्वामित्वसहित महत्वपूर्ण मामलों में उनके साथ संभावित भेदभाव करने के लिए भारत के निर्णय सेचिंतित हैं।

साथ ही उन्होंनेयह भी कहा था कि, जम्मू और कश्मीर राज्य की स्थापना उसके लोगों की जातीय, भाषाई औरधार्मिक पहचान का सम्मान करने के लिए विशिष्ट स्वायत्तता की गारंटी के साथ की गई थी।यह मुस्लिम बहुमत वाला भारत का एकमात्र राज्य भी था। 5 अगस्त 2019 को, सरकार ने एकतरफाऔर बिना परामर्श के जम्मू और कश्मीर की संवैधानिक विशेष स्थिति को रद्द कर दिया, औरमई 2020 में, तथाकथित डोमिसाइल नियम पारित कर दिए, जिसने क्षेत्र से उन लोगों को दिएगए सुरक्षा हटा दिए। भूमि कानूनों में बाद में होने वाले बदलाव इन सुरक्षा को खत्मकर रहे हैं।

नई दिल्लीमें सरकार द्वारा स्वायत्तता और प्रत्यक्ष शासन की हानि से जम्मू और कश्मीर के लोगोंको पता चलता है कि उनकी अपनी सरकार नहीं है और अपने अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चितकरने के लिए इस क्षेत्र में कानून बनाने या संशोधन करने की शक्ति खो चुके हैं।

भारत सरकारसे यह सुनिश्चित करने का अपील करते हुए बयान में कहा गया है कि जम्मू और कश्मीर केलोगों के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा हो, और वे अपनी राजनीतिकराय व्यक्त करने और उन्हें प्रभावित करने वाले मामलों में सार्थक रूप से भाग लेने मेंसक्षम हों।